लक्ष्मी चंद, पांडव नगर के एक छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ रहते हैं और अपने घर का खर्च चलाने के लिए स्कूल से लौटने के बाद ट्यूशन पढ़ाते हैं। लक्ष्मी चंद की अर्थिक स्थिति सही नही है। लेकिन फिर भी उन्होंने यह ठान लिया है कि किसी भी स्थिति में वे इन गरीब मजदूरों के बच्चों का साथ नहीं छोड़ेंगे। लक्ष्मी चंद का जन्म किसान परिवार में हुआ था। बी. एस. सी. करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वे गरीब बच्चों को पढ़ाने लगे।
इसकी सुरुआत उन्होंने दो बच्चों को मेट्रो फ्लाइओवर
ब्रिज के नीचे पढ़ाना से शुरू किया था। वहाँ कोई सुविधा भी नही था l फिर भी धीरे-धीरे
बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई। आज यह स्कूल दो शिफ्ट में चलता है। यहां सुबह की
पहली शिफ्ट में लड़के पढ़ते हैं और दोपहर की शिफ्ट में लड़कियां। उन्होंने मेट्रो फ्लाइओवर ब्रिज को स्कूल की छत बनाया और सामने की दीवार को
ब्लैकबोर्ड। इस तरह शुरू हो गया फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज। आज इस स्कूल में लगभग 250 बच्चे पढ़ते हैं।
इस स्कूल में ऐमिटी यूनिवर्सिटी, खालसा कॉलेज और अन्य कॉलेजों के छात्र भी बच्चों को पढ़ाने आते हैं। रोजाना कोई न कोई छात्र पढ़ाने आता है। इसके साथ ही अकसर कुछ लोग इन बच्चों के लिए तोहफे भी लाते हैं। मेट्रो ने यहां बच्चों के लिए पीने के पानी का व्यवस्था भी कर दी है।
बहुत ही कम लोग होते है जो दुसरो को बेहतर बनाने में अपना जीवन समर्पण कर देते है जो दुसरो के लिए कुछ करने का जूनून लेके आगे बढते है उनमे से एक शिक्षा है, जो इन सारी सुख सुविधाओ से ऊपर है l जिसे ये मिल गया वो अपने आप सब कुछ हाशिल कर सकता है l
यही काम लक्ष्मी चंद जी ने कर दिखया है जो खुद
अँधेरे में रह कर दुसरो के जीवन को रोशन कर रहे है l ऐसे बहुत ही कम वैय्क्ति होते
है जो दुसरो को चमकता देख गोरव महसूस करते है l ऐसे वैय्क्ति की जितनी भी प्रसंशा
की जाए कम है l
जब एक कदम अँधेरे को दूर करने के लिए उठता है तो अपने
आप ही उसके साथ कई ओर कदम जुड़ने लगते है l खुद को बेहतर बनाना तो अच्छा काम है ही
पर उससे भी बेहतर दुसरो को बेहतर बनाना ओर उसके जीवन में रौशनी लाना उससे भी ऊपर
है l
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